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Wednesday, September 1, 2010

राहुल के बहाने झांकिए अपने गिरेबान में

बाजार का दखल जिंदगी में कितना बढ़ गया है। एक वक्त था जब बाजारों में जिंदगी जीने के सामान बिका करते थे लेकिन अब जिंदगी की सारी खूबसूरती बिक रही है। इससे हजार कदम आगे का वीभत्स सच यह है कि जो समाज में कभी सबसे ज्यादा निंदित था,त्याज्य था वह सबसे आकर्षक आवरणों में इतनी ठसक के साथ बिक रहा है कि बाकी सब शर्मिंदा हो जाएं। टीवी पर एक कार्यक्रम आया-राहुल दुल्हनिया ले जाएगा। यह वही राहुल था जिसने अपने पिता के पीए के साथ भारी मात्रा में नशा किया और मौत के मुंह से वापस आया। इस घटना में उसके यशस्वी पिता प्रमोद महाजन के पीए की जान चली गई। बाद में यह शख्स अपने बचपन की दोस्त के साथ शादी और फिर उसे पीटने और तलाक लिए जाने की खबरों के लिए चर्चाओं में रहा। हर स्थिति में लोगों ने, खासकर महिलाओं ने उसे जी भर कर कोसा और ऐसा पति किसी को न मिले जैसी बातें भी की। यह सब हुए ज्यादा वक्त नहीं गुजरा था कि यही राहुल रातों-रात लड़कियों का चहेता बन गया। उसने खुद अपनी डरावनी छवि से बाहर निकलने के लिए पैसा लगा कर एक रियलिटी शो का आयोजन करवाया। इस शो के जरिए इस बदमिजाज शख्स को इस तरह प्रस्तुत किया गया जैसे इससे बढ़कर आदर्श पति तो किसी भी लड़की के लिए हो ही नहीं सकता । प्रायोजित तरीके से इस शो और राहुल महाजन की चर्चा टीवी, अखबारों और एफ एम में होने लगी। ऐसा लगने लगा जैसे कोई देवदूत धरती की कन्याओं को धन्य करने आया है। कई-कई लड़कियां इस स्वयंवर में शामिल हुंई पर इसे जीता डिम्पी नाम की एक बंगाली बाला ने जो एक मॉडल भी थी। ताजा खबर यह है कि राहुल ने देर रात डिंपी के साथ मारपीट की और उसने राहुल का घर छोड़ दिया। यह बाजार की प्रायोजित चमक के उतर जाने के बाद का सच था। कोई ताजुब्ब नहीं कि वे महिलाएं जो अभी कुछ ही दिन पहले तक राहुल के स्वयंवर में गजब की रूचि दिखा रहीं थीं वही एक बार फिर उसे गाली बकती,कोसती दिखाई देने लगें। इससे भी ज्यादा ताज्जुब की बात यह हो सकती है कि राहुल के स्वयंवर का सीजन टू आयोजित हो जाए और उसमें भी बढ़-चढ़कर लड़कियां हिस्सा लें और फिर अभी जिन जबानों से निंदा की बरसात हो रही है वे ही राहुल की तारीफों के कसीदे पढ़ने लगें। दरअस्ल यह मूल्यहीनता के उत्सव में तब्दील हो जाने का दौर है। बाजार की अनिवार्य शर्त हो गई है अब मूल्यहीन होना। मूल्यहीनता में आकर्षण है, चर्चा में बने रहने के तत्व हैं और मूल्यहीनता ही बिकाऊ है। जो बिकता है बाजार उसी पर अपना दांव लगाता है। कुछ समय पहले इसी मूल्यहीनता को सच का लिबास पहनाकर सच का सामना शो के माध्यम से बेचा गया था। वे लोग जो राहुल महाजन जैसे लोगों को पसंद करते हैं उन्हें अपनी बच्ची को परेशान करने वाले उसके पति को सजा देने या उसकी निंदा करने का अधिकार नहीं रह जाता । हम गलत के खिलाफ यदि कसमसाते हैं तो यह अपने आपमें उम्मीद जगाता है। लेकिन यह भी हमें ही तय करना है कि हम गलत के खिलाफ कितनी देर तक खड़े रहते हैं। यदि हम सिर्फ गलत को गलत कहकर ही संतुष्ट हो जाते हैं तो कहीं न कहीं यह गलत आहिस्ता से हमारे जीवन का हिस्सा बन जाता है और हम कब अनजाने ही उसके समर्थक हो जाते हैं हमें पता ही नहीं चलता। ऐसा होने पर हम स्वाभाविक रूप से गलत के विरोध का अधिकार खो देते हैं। राहुल प्रकरण के बहाने समाज को और इसके एक अहम हिस्से मीडिया को अपने गिरेबान में झांककर देखने की कोशिश करनी चाहिए। धीरेंद्र शुक्ल

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