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Wednesday, September 1, 2010

जल चिंतन:संस्कृति का महत्वपूर्ण तत्व है जल संरक्षण

जल के प्रति हमारे यहां शुरू से ही एक तरह की चेतना, सजगता दिखाई देती है। पौराणिक आख्यान इस बात का प्रमाण हैं कि हमारे पूर्वज जल के प्रति अत्यंत संवेदनशील और दूरदर्शी थे। संभवत: इसीलिए पुराणों में भूतभावन भगवान शिव के जिन रूपों की चर्चा की गई है उनमें एक रूप जल भी है। इस बात के धार्मिक आधार तो हैं ही लेकिन इसके पीछे एक सामाजिक आधार भी है। हमारी संस्कृति में शिव का विशिष्ट स्थान है, वे सर्वपूज्य हैं, आदिदेव हैं इसलिए यदि जल उनका स्वरूप है तो हमें उनके इस स्वरूप का , जल का सम्मान करना होगा, उसके प्रति मितव्ययी दृष्टिकोण अपनाना होगा, यही इस पौराणिक आख्यान का सामाजिक निहितार्थ है। जीवन की छोटी -छोटी बातों में हमारी संस्कृति के मोहक रुप दिखाई देते हैं। लेकिन आपा-धापी के कारण हम उनके वास्तविक अर्थ को समझने से वंचित रह जाते हैं। हमारी संस्कृति का ऐसा ही एक रुप हैं कुंए और बावड़ियां। हमारे पूर्वज इनका निर्माण कराते थे। राजा-महाराजा जनता को जल की बेहतर उपलब्धता के लिए इन्हें बनवाते थे। जिनके पुराने मकान हैं उनके यहां कुआं जरूर मिल जाएगा। यह अलग बात है कि अब प्राय:लोग इन कुंओं में मोटर लगाकर उनके पानी का इस्तेमाल करते हैं, बहुत सी जगहों पर कुंओं को ढंक दिया जाता है। आज चारों तरफ मची जल की त्राहि-त्राहि का एक कारण और इसका सहज समाधान इन स्थितियों में देखा जा सकता है। यह मानवीय पृवत्ति है कि उसे जब कोई चीज सहजता से उपलब्ध होती है तो वह उसके प्रति लापरवाह हो जाता है। कुछ दोहे मनुष्य की इसी पृवत्ति की ओर इंगित करते हैं, जैसे- अति परिचय से होत है बहुत अनादर भाय/मलयागिर की भीलनी चंदन देत जराय। इस दोहे मे ंअतिपरिचय का एक अर्थ सहज उपलब्धता भी तो है। जल के प्रति हमारे यहां शुरू से ही एक तरह की चेतना, सजगता दिखाई देती है। पौराणिक आख्यान इस बात का प्रमाण हैं कि हमारे पूर्वज जल के प्रति अत्यंत संवेदनशील और दूरदर्शी थे। संभवत: इसीलिए पुराणों में भूतभावन भगवान शिव के जिन रूपों की चर्चा की गई है उनमें एक रूप जल भी है। इस बात के धार्मिक आधार तो हैं ही लेकिन इसके पीछे एक सामाजिक आधार भी है। हमारी संस्कृति में शिव का विशिष्ट स्थान है, वे सर्वपूज्य हैं, आदिदेव हैं इसलिए यदि जल उनका स्वरूप है तो हमें उनके इस स्वरूप का , जल का सम्मान करना होगा, उसके प्रति मितव्ययी दृष्टिकोण अपनाना होगा, यही इस पौराणिक आख्यान का सामाजिक निहितार्थ है। इसी संदर्भ में यह भी चिंतन का विषय है कि आज हम जल के अपव्यय को रोकने और उसके संवर्धन के यथा संभाव उपायों पर जोर दे रहे हैं। यदि हम कुंओं और बावलियों पर विचार करें तो एक बात साफ दिखाई देती है कि इनके निर्माण से ये दोनों ही बातें अपने आप पूरी हो जाती थीं। जब कोई श्रम करके, कुंए या बावड़ी से पानी खींच कर लाता है तो उसकी कोशिश होती है कि पानी की एक-एक बूंद का सही उपयोग हो। वह नहाता है तो हो सकता है घर में लगे नल से कई -कई बाल्टी पानी बहा दे लेकिन इस मामले में ऐसा नहीें हो सकता । कुंए और बावड़ियों में वर्षा जल का पर्याप्त संग्रह हो जाता है। जो साल भर की जरूरत पूरी करने के लिए पर्याप्त होता है। कुछ प्रदेशों की सरकारों ने मकान बनाने के लिए जलसंवर्धन की व्यवस्था करना अनिवार्य कर दिया है अन्यथा वहां मकान का नक्शा पास नहीं किया जाएगा ऐसी व्यवस्था कर दी गई है। लेकिन इस व्यवस्था का , इस कानून का पालन नहीं किया जाता। इस बारे में हम एक बात देख सकते हैं कि पहले हमारे आस-पास की अधिकतर जगहें पक्की यानि सीमेंट से बनी नहीं होतीं थीं। इससे बारिश का जल कम मात्रा में ही सही धरती के भीतर जाता था। घरों में कुंए होते थे और उनके चारों ओर की जगह भी सीमेंटेड नहीं होती थी। इससे भी पानी की कुछ मात्रा धरती के अंदर जाती थी और कुंओं का जलस्त्रोत जीवंत बना रहता था। भूजल स्तर में आई गिरावट का एक बड़ा कारण यह भी है कि हमारे आस-पास से कच्ची, मिट्टी और मुरूम वाली जगहें खत्म हो गई हैं। चैन्नई नगर निगम ने इस बात का महत्व समझते हुए नालियों के निर्माण की तकनीक में संशोधन किया है। वहां नालियों के ऊपरी भाग और उसके भीतर दोनो ओर का कुछ भाग तो पक्का होता है लेकिन उसका आधार कच्चा रखा जाता है। ऐसा इसलिए किया गया है कि नालियों के माध्यम से जल की कुछ मात्रा धरती के अंदर जाती रहे। सारे देश में नाली निर्माण में जिस तकनीक का उपयोग किया जाता है उसमें आधार भी कांक्रीट से बना होता है। इससे जल भूमि के भीतर नहीं पहुंच पाता। चैन्नई जैसे विकसित शहर में इस तरह का उपयोग हमारे पूर्वजों की दूरदर्शी सोच का स्वीकार ही है। एक और बात इस दिशा में दिखाई देती है। हमारे पौराणिक आख्यान हैं कि यदि किसी मृत व्यक्ति के नाम पर कुंए या बावड़ी का निर्माण करा दिया जाए तो जब तक ये जल संसाधन जीवित रहते हैं दिवंगत व्यक्ति की आत्मा को तृप्ति और शांति प्राप्त होती रहती है। इस समय में, जबकि हालात मुश्किल से मुश्किल होते जा रहे हैं और किसी ने कहा है कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए लड़ा जाएगा तब यह बेहद जरूरी है कि हम अपनी छोटी सी सही लेकिन सार्थक कोशश कर पानी का संरक्षण करें। कुंओं को उनके स्वाभाविक रूप में इस्तेमाल करें ताकि जल अपव्यय की पृवत्ति पर थोड़ी ही सही पर कमी आ सके। अपने गार्डन और घर के आस-पास की जितनी जगह को हम मुरूम वगैरह डालकर उसके कच्चेपन में ही व्यवस्थित रख सकें उतना अच्छा। इससे भूजल स्तर बनाए रखने में मदद मिलेगी। यह भी सोचें कि हम लाखों रुपए खर्च कर मकान बनाते हैं और धरती से बेतहाशा जल शोषण करते हैं पर उसे एक बूंद भी नहीं लौटाते, यह अपने आप में हद दर्जे की कृतघ्नता है। इससे बाहर आने के लिए अपने मकान के निर्माण के समय वाटर हार्वेस्टिंग का इंतजाम अनिवार्य रूप से करें ।

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