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Wednesday, December 2, 2009

भोपाल की बात

तीन तारिक को भोपाल गैस त्रासदी की २५ वी बरसी थी । कहते है की वक्त हर जख्म को भर देता है लेकिन भोपाल के साथ ऐसा नही है । जैसे जैसे वक्त गुजरता जा रहा है इस खूबसूरत शहर के जख्म और गहरे होते जा रहे है। कभी उस तस्वीर को देखिये जो इस त्रासदी की भयावहता का प्रतीक बन गई है- इसमे एक बच्चा है , मरा हुआ , उसकी आँखें निकली हुई है , और उसे दफ़न किया जा रहा है। ऐसे सैकड़ों , हजारों बच्चे ऐसे दफ़न कर दिए गए , उनकी माएं जिंदा है । उन्हें अपने मासूम बच्चों की आवाजे आज भी सुनाई देती है । आज वे बच्चे होते तो २५ साल के जवान होते । भोपाल गैस त्रासदी को सही अर्थो मैं समझ पाना मानो अभी भी शेष है । इस मामले मैं जितनी खोफ्नाक चालें चली गई हैं , उसे समझने के बाद कुछ देरके लिए मस्तिषक स्तब्ध हो जाता है ।

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