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Thursday, November 26, 2009

गुफ्तगू

कभी कभी ऐसा लगता है की हम नाहक और बेवजह कुछ न कुछ कहना चाहते हैं, कुछ न कुछ कहते रहते हैं । इस फेर मैं हमारी जिंदगी की बहुत सारी ज़रूरी बातें अनकही रह जाती हैं, छूटती चली जाती हैं । हम समाज के बारे मैं तो बहुत सारी बातें कर लेते है ,राजनीती के बारे मैं तो हमारी चर्चाएँ रूकती ही नही हैं । पर वे चीजें , वे द्रश्य जिनसे हम घिरे रहते हैं और फिर भी जिन्हें महसूस नही कर पाते उनके बारे मैं कुछ क्यों नही कहते ?ये सर्दिओं का मौसम है तो जाहिर है की सर्दियों का ज़िक्र हमारी गुफ्तगू का हिस्सा होना चाहिए , बल्कि चाय की बात ही नही होनी चाहिए, चाय पीने -पिलाने का दौर भी चलना चाहिये । सोचिये! सर्दियाँ क्यों आती हैं ? विज्ञान की सकरी गलियों मैं मत भटकिये , दिल की खूबसूरत वादियों में आईये । मुझे लगता hai ki sardiyan rishton ka ahasas karane ke liye hi aati hain . ye rishton ki yad ka mausam lagta hai . koi zaroori nahi hai ki rishte paas main hi hon.bas unki yadoon ka lihaf hona chahiye .

3 comments:

  1. bahoot achha isi tarah likhate rahe

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  2. Welcome in the world of thought communication.
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  3. आप आये बहार आयी .......
    कुछ नया ही दे के जाइयेगा

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