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Saturday, March 28, 2009

तआरूफ

अपना तआरूफ एक हाइकु के जरिये कराना चाहता हूँ - शोर नहीं हूँ हूँ खामोशी का राग मारू विहाग बावजूद इसके तमाम दुनिया , सवालों और हसरतों का शोर हर वक़्त गूंजता रहता है दिल मैं जिगर मैं . कोशिश यही रहेगी की इसके बीच से कुछ सुकून की गुफ्तगू , कोई जीवन का राग आप सबके लिए तलाश सकूं ,अपनी बात आपके साथसाझा कर sakoon

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