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Wednesday, September 1, 2010

सावन में झरता है आनंद

सावन -यह शब्द सुनते ही मनमें कुछ मचलने सा लगता है। इसका जिक्र होते ही अपने भीतर किसी कोने में मुर्झाए पड़े सुख के क्षण जीवंत होकर मचलने लगते हैं। मनुष्य और प्रकृति का उल्लास,आनंद इस समय झर झर झर करता हुआ झरता रहता है। गर्मियों में सवाल से पूछते सूखे खड़े पेड़ मानो हरीतिमा की चादर ओढ़कर नाचने लगते हैं और वीरान समाधियों से दिखते विशाल पर्वतों में जीवन की लहर दौड़ती रहती है। युवाओं के लिए यह मस्ती का मौसम है तो घर-बार वाले सनातन धर्मावलंबियों के लिए यह धर्म की वैतरणी के साक्षात होने का समय । जिनके प्रिय उनसे दूर हैं उनके लिए इसकी बूंद -बूÞद आग लगाने वाली है तो जिनके प्रिय पास हैं उनके लिए इसकी एक -एक बूंद अमृत की तरह है। अपने हर रंग में , हर मिजाज में सावन आनंद घोलता दिखाई देता है। इस बार हम आपके ही साथ तय कर रहे हैं सावन का यह मस्ती भरा सफर- मस्ती भर है समां... चिलचिलाती धूप में जब प्रकृति और मनुष्य बुरी तरह झुलस जाते हैं तब सबकी आस यही रहती है कि कब बारिश आए और राहत मिले । आषाढ़ का माह आते ही यह आस पूरी होनी शुरू होती है,और जब सावन आता है तब गर्मी की जानलेवा बेचैनी की रही सही यादों को भी मन धो डालना चाहता है । अधिकांश युवा इस मौसम का जमकर मजा लेते हैं । वे अधिकतर अपने दोस्तों के साथ भीगते हुए लांग ड्राइव पर निकल जाते हैं या जहां -जैसा मौका मिले मस्ती के बहाने ढूÞढ लेते हैं। मौसम वैज्ञानिक दृष्टि से भी मानसून अब तक पूरी तर सक्रिय हो जाता है। सब के लिए मनभावन सावन की दूसरी तमाम खासियतों, नजाकतों के अलावा एक खासियत यह भी होती है कि यह बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी को अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है। बचपन की सबसे ज्यादा सरस स्मृतियां शायद इसी से जुड़ी होती हैं। सुदर्शन फाकिर की एक नज्म है- ये दौलत भी ले लो ,ये शोहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी/मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन /वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी। सावन में सड़कों पर भीगते -दौड़ते बच्चों को देखकर उदासी दूर हो जाती है। ऐसा लगता है जैसे जीवन पूरे वेग से खिलखिला रहा है। बचपन का ऐसा उल्लास , ऐसा रंंग किसी और ऋतु में दिखाई नहीं देता । ्र्रप्रकृति का यौवन सावन प्रकृति का यौवन है, जवानी है। इसीलिए यह अकारण नहीं है कि इसे काम ऋतु भी कहा जाता है। काम शब्द का अर्थ बहुत व्यापक है इसका अर्थ कामना भी है और सृजन की उत्कंठा भी। इसलिए इस ऋतु का असाधारण प्रभाव पड़ता है । इस ऋतु में जैसे आयोजन होते हैं वैसे और कभी नहीं होते । इसी ऋतु में आम के पेड़ों पर झूले पड़ते हैं और उनमें यौवनाएं झूलती हैं । ऐसा लगता है मानो प्रकृति और देह का उल्लास एकाकार हो रहा हो। सृजनात्मकता के लिए प्रेरक यह सृजन से जुड़े लोगों को ही सृजनात्मकता के लिए प्रेरित नहीं करता बल्कि यह हर किसी में सृजनात्मकता का संचार भी करता है।गांवों में इसका प्रभाव देखा जा सकता है। ग्राम्य कला के सबसे शिखर दिन यही होते हैं। इन्हीं दिनों में लोकगीतों का समाँ बंधता है, लोककलाएं परवान चढ़ती हैं और धर्मसभाओं का भी आयोजन होता है। यह संभवत: काम का ही आध्यात्कि रूपांतरण है कि मीराबाई कहती हैं-बरसे बदरिया सावन की/सावन में मेरो उमग्यो मनवा, भनक परी हरि आवन की। यानि सावन में मीरा का मन भी उल्लास से भर जाता है और उन्हें इसी माह में अपने प्रभु के आने की भनक लगती है। धर्म की अलख सावन भूतभावन भगवान शिव का माह माना जाता है । पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव का एक रूप जल भी है। सावन की वृष्टि का आशय भगवान शिव की कृपा वृष्टि भी है। इसके अतिरिक्त पतित उद्धारक माह भी इसे कहा जाता है। पौराणिक आख्यान है कि जिनकी मुक्ति कहीं नहीं होती , किसी प्रकार नहीं होती वे श्रीमद भागवत कथा श्रवण से मुक्त हो जाते हैं। श्रीमद भागवत कथा श्रवण के लिए भी श्रावण मास को सर्वाधिक उपयुक्त माना गया है। यह भक्ति के आनंद रस की वर्षा का माह है। अधिकांश शहरों में जगह-जगह बने शिवालयों में शिवाभिषेक और श्रीमद् भागवत कथारस की वर्षा होते देखे जा सकती है। इसी माह में एक अदभुत त्यौहार आता है नागपंचमी । पौराणिक दृष्टि से तो सांप शिव के गण है इसलिए उनकी पूजा होती है लेकिन सावन में इस पर्व के आने का विशेष अर्थ है। इसका अर्थ यह भी है कि मनुष्य उन बातों को, उन जीवों को और उन प्रवृत्तियों को भी अपने जीवन में सम्मान देकर उनसे समायोजन बिठाने की कला सीखे जो नकारात्मक हैं, विषैली हैं। रिश्तों का उल्लास सावन में ही रक्षा बंधन जैसा महापर्व आता है । यह भाई -बहन के पावन रिश्तों को और भी अटूट बनाता है, उन्हें एक -दूसरे के प्रति कर्तव्यों और प्रेम का स्मरण कराता है। बाजार भी गुलजार सावन जब सभी के लिए है तो बाजार के लिए भी । रक्षा बंधन बाजार के लिए सबसे बड़ा त्यौहार होता है। इसी दौर में मिठाई और चॉकलेट बनाने वाले ब्रांड अपने नए उत्पाद बाजार में लाते हैं। एक मोटे अनुमान के मुताबिक सिर्फ रक्षा बंधन के मौके पर ही देश भर में पचास हजार करोड़ का व्यवसाय होता है। कुछ जरूरी बातें दरअसल सावन एक ऋतु के साथ-साथ एक एहसास का नाम भी तो है। यदि एहसास ही न रहें तो कितनी भी मोहक ऋतु क्यों न हो उसका कोई प्रभाव हम पर नहीं पड़ेगा। आपा-धापी भरे, भागमभाग भरे इस जीवन में यही हो रहा है। हमारे एहसास खो रहे हैं। शायद इसीलिए जाने-अनजाने हम उन चीजों को भी क्षति पहुंचा रहे हैं जो जीवन के असाधरण सौंदर्य के प्रेरक और पोषक इस माह के लिए जरूरी हैं। पर्यावरण का विनाश इनमें से एक है। वृक्ष हैं तो बारिश है, बारिश की नजाकत है तो सावन है। यदि हम चाहते हैं कि हमारी पीढ़ियां हमसे सावन की परिभाषा न पूछें बल्कि हमारी ही तरह उसके अमृत का रसास्वादन करें तो यह पहल हमें करनी ही होगी कि हम अपने पर्यावरण को संरक्षित करने के आत्मीय प्रयास करें। इसी सावन में पौधरोपण कर यह शुरूआत की जा सकती है, यह प्रकृति के आनंद में हमारी भी सहभागिता होगी।

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