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Friday, September 17, 2010

नारी मन की समर्थ चितेरी:उत्तमा

वक्त बेरंग होता है, लोग उसमें रंग भरते हैं-अपनी जिंदगी का। लोग बदलते हैं, पीढ़ियां बदलती हैं तो यह रंग भी धूसर होने लगते हैं, फिर इनकी जगह कोई नया रंग, कोई नई बात अपनी जगह बनाने लगती है। लेकिन इस चक्र में भी कुछ हिस्सा ऐसा होता है जो हमेशा सुरक्षित होता है। समय की शिलाओं पर कुछ रंग हमेशा ताजा रहते हैं और कुछ आवाजें हमेशा इसकी वादियों में गूंजती रहती हैं। कलाएं इसीलिए शताब्दियों के लंबे सफर के बाद भी महफूज रहती हैं। कला का यह शाश्वत स्पर्श, किसी भी कलाकार को गहरे समर्पण और सृजन से ही हासिल हो पाता है। सृजनात्मकता व्यक्ति से उत्पन्न होेकर समिष्टि को ,सारी कायनात को अपने आप में समेट लेती है और एक कलाकार की बात सारी दुनिया की बात हो जाती है। उत्तमा दीक्षित ऐसी ही कलाकार हैं जिनमें यह हुनर है और जिनका काम कला की शाश्वतता को छूता हुआ प्रतीत होता है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पैंटिंग एंड आर्ट्स डिपार्टमेंट में सीनियर लैक्चरर डा.उत्तमा का संबंध आगरा से भी रहा है। वे यहां के प्रतिष्ठित आगरा कालेज के कला संकाय में करीब पांच साल तक प्राध्यापक रहीं। उत्तमा ने इसी साल अप्रेल में पांच विविध विषयों पर अपनी पेंटिं सीरीज लांच की है। इनमें बनारस के घाटों पर नौ ,प्रकृति पर चौदह, भारतीय स्त्री पर सोलह और जयशंकर प्रसाद रचित महाकाव्य कामायनी पर आधारित श्रंखला में सात चित्र शामिल हैं। इसके अलावा स्वतंत्र विषय पर भी सात चित्रों का समावेश है। इनमें कामायनी पर आधारित चित्र श्रंखला सबसे ज्यादा चर्चाओं में है। इसका कारण सिर्फ इतना है कि उत्तमा ने इस सीरीज में मनु इड़ा और श्रद्धा की वही भावभंगिमाएं प्रदर्शित करने का साहस किया है जिनका वर्णन प्रसाद ने किया है। ये पेंटिंग एक सीमा तक प्रसाद के भावों को संप्रेषित करने में सक्षम हैं। उत्तमा का कहना है कि-‘‘मैने संघर्ष बहुत किया और उपेक्षा भी बहुत सही, मेरी यात्रा संघर्ष भरी रही है’’ उत्तमा के इसी संघर्ष ने उन्हें स्थापित मान्यताओं से, समाज से और वक्त से भी लड़ने का माद्दा दिया है। उनकी यह संघर्षपूर्ण यात्रा जितनी कठिन बाहर थी उससे ज्यादा दुरुह और तकलीफदेह भीतर। इससे उनकी एक नजर बनी, दृष्टि का विकास हुआ। स्त्री के हालात पर गजब का पाखंड एक कलाकार ने समाज में देखा है और शायद इसीलिए कहीं न कहीं उनके अचेतन में स्त्री का वह रुप, वह सच्चाई बहुत गहरे उतर गई है - तमाम चमकीले आकड़ों के बाद भी जिसकी हालत में कोई सुधार नहीं आता । जो घरों में सताई जा रही है, बंद है,जिसकी हसरतें बाहर आने के लिए छटपटा रही हैं। उत्तमा के बहुसंख्य चित्रों में ऐसी ही स्त्री कई -कई रुपों में सामने आती है। आम तौर पर बनारस के घाटों का जिक्र आते ही नजर में धार्मिक वातावरण कौंध जाता है, जिसमें मंदिर हैं, स्नान करते लोग और पंडे वगैरह हैं। लेकिन उत्तमा की बनारस के घाटों पर जो चित्र श्रंखला है उसमें ये सब नदारद हैं। यहां स्त्री की मुश्किलें उसके मनोभावों का चित्रण ही प्रमुख रुप से हुआ है। भारतीय स्त्री पर सबसे ज्यादा सोलह चित्रों का सृजन भी उनके मन की दशा की सार्थक अभिव्यिक्ति करता है। इन चित्रों में नारी मन संघर्ष उभर कर सामने आया है जो दर्शक के मन को भी अपने साथ ले जाता है, उसे छूता है। इन सोलह चित्रों में से छह तो सिर्फ इंतजार पर हैं। इनमें से पांच में प्रतीक्षा की पीड़ा आंखों से साफ झलकती है तो एक में अपने प्रिय के आने की खुशी का भाव भी है। इन्हीं चित्रों में उस जमाने से बचने की कोशिश करती स्त्री है , जिसकी नजरों में भी नाखून हैं। उत्तमा के चित्रों में रंग संयोजन विषय के मुताबिक है। उनके अधिकांश चित्र मन के गहरे अंधेरों को अभिव्यक्त करने के प्रयास हैं इसलिए इनका रंग संयोजन डार्क है। कहीं -कही जहां ऐसी स्थितियां नहीं हैं वहां हल्के रंगों का इस्तेमाल किया गया है। स्त्री श्रंखला के ही दो चित्रों में यही बात है तो माइ क्रिएशन सीरीज के चित्र में भी इसे देखा जा सकता है। धीरेंद्र शुक्ल

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