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Tuesday, February 10, 2015

 सस्ती संगीत सेवा  

 वह प्रतिभाषाली लोगों का एक गिरोह था । उन सभी में एक ही प्रतिभा समान रूप से थी और वह यह कि वे अपने आपको असाधारण प्रतिभाषाली समझते थे। हमारे एक परिचित भी इसी गिरोह का हिस्सा थे जिसे वे सब म्यूजीकल ग्रुप कहते थे नाम था-मधुर म्यूजिकल ग्रुप। एक दिन इन्हीं परिचित ने आमंत्रित किया कि आज हमारे ग्रुप का प्रोग्राम है आप जरूर आइये। हम सपत्नीक पहुंचे,देखा तो हाल में घुसते ही उनकी प्रतिभा के दर्षन हो गए। सामान्य रूप से प्रवेषद्वार के आखिर में मंच होता है जिसकी ओर मुंह करके श्रोता बैठते हैं यानी प्रवेष द्वार की ओर उनकी पीठ होती है लेकिन यहां ऐसा नहीं था। यहां प्रवेष द्वार के ठीक बाजू से गायक झुंड लगाकर बैठे थे और साजिंदों पर उनकी घातक निगाह थी। गाने वाले अपने ढंग से गा रहे अपनी धुन मंे और बजाने वाले उनके पीछे भागते सुर पकडने की कोषिष कर रहे थे ऐसा समां बंधा था कि बस तू डाल-डाल मैं पांत-पांत हुआ जा रहा था। ऐसे संघर्षपूर्ण और रोमांचक दृष्य के भीतर हम किस तरह घुसें हमें समझ में नहीं आया,हम ठिठक गए,हमें लगा कि हमारे प्रवेष से वहां मौजूद श्रोताओं के मनोरंजन में बाधा पहुंच सकती है,लेकिन तभी हमारा संकोच तोडते हुए हमारे एक आदरणीय मित्र ने जोर से आवाज दी-आ जाओ-अंदर आ जाओ यार, बाहर क्या कर रहे हो? हम भीतर दाखिल हुए लेकिन हमने देखा कि इस सबसे जो गायक वहां गा रहे थे उनकी पकड में कोई फर्क नहीं आया बल्कि माइक पर उनकी पकड और बढ गई। थोडी देर बाद हमें पता चला कि हम और हमारे सम्माननीय मित्र के अलावा वहां एक भी श्रोता नहीं था जितने थे सब गायक ही थे और इस उम्मीद में वहां जमे थे कि देर -सबेर हमें भी मौका मिलेगा। कुछ देर बैठने के बाद एक बुजुर्ग ने माइक थामा, सबसे पहले उन्होंने देष में षास्त्रीय संगीत की उपेक्षा पर आंसू बहाए और फिर इसे दूर करने की कोषिष के तहत किसी राग विषेष की बारीकियों का जिक्र कर अनूप जलोटा द्वारा गाए गए कबीर के भजन-झीनी रे झीनी गाना षुरू किया अभी वे षुरू ही हुए थे कि गले में लटका उनका मोबाइल फोन भी बजना षुरू हो गया, हमें लगा कि षास्त्रीय संगीत के प्रति अपना समर्पण दिखा रहे ये बुजुर्ग गाना गाने में मगन हो जाएंगे लेकिन वे चदरिया झीनी झीनी छोडकर बीच में ही फोन पर मगन हो गए।हमारे मित्र ने कहा लगता है उसी चदरिया वाले का फोन है कह रहा होगा हमने तो बढिया दी थी भइया न झीनी थी न फटी खैर ३ण्ण्बात आगे बढी। एक ऐसे कलाकार वहंा खडे हुए जिनका खडे होना ही अपने आप में किसी कला से कम नहीं था,वे कहीं और होते तो लोगों को इस बात का विष्वास होना मुष्किल हो जाता कि वे किसी अस्पताल से भागकर नहीं आए बल्कि अपनी इच्छा से घूम-घाम रहे हैं। उनके आते ही उद्घोषक ने बताया कि अब वे कौन सा गाना गाएंगें। साजिंदों ने उस गाने की धुन बजाना षुरू की, गायक के हाथ में माइक था लेकिन उनकी आवाज ही नहीं निकल रही थी बजाने वाले बजा रहे थे और गायक भी पूरी हिम्मत से आवाज निकालने की कोषिष में लगा हुआ तभी हमने देखा गायक झूम-झूम कर गर्दन हिला रहा है,हम चैंके हमें आवाज नहीं आ रही थी लेकिन बजाने वाला भी झूम रहा था हमें हमें लगा जैसे गायक बजाने वाले के कान में फुसफुसा कर गा रहा है जब बजाने वालों ने बंद किया तब पता चला कि गाना हो भी चुका लेकिन इससे ज्यादा हैरत तब हुई जब सारे श्रोताओं ने तालियां भी बजाईं। झीनी झीनी चदरिया वाले गायक फिर आए और पूरे कार्यक्रम में उन्होंने पूरी कोषिष की कि उनके अलावा कोई और न गाने पाए और वे इसमें अस्सी फीसदी तक कामयाब भी रहे। एक और गायक आए जिनके बारे में बताया गया कि वे षहर के नामी दंत चिकित्सक हैं। डाॅक्टर साहब ने जिस धज के साथ माइक पकडा उससे मुझे उनके मारू इरादों की गंध आने लगी कि तभी उन्होंने मेरी बात सच साबित करते हुए बताया कि जो गाना वे गाने वाले हैं वह किस राग पर आधारित है और उसमें कौन सा सुर लगता है, मुझे तुरंत आकाषवाणी के रागमाला कार्यक्रम की याद आ गई यह कार्यक्रम मैने कई बार सुना था लेकिन कोई इसे इस तरह याद कर उसका उपयोग जानलेवा ढंग से भी कर सकता है यह नहीं सोचा था, लेकिन जो नहीं सोचा था वह देखा और सुना भी। डाॅक्टर साब ने आंख बंद की और लगा जैसे उनके दांतों में ही गजब की तकलीफ है जिसके कारण उनकी आवाज बल्कि आवाज क्या चीख निकल रही है। कई श्रोता ऐसे थे जो पूरी ताकत लगाकर गाना गाने के जुगत भिडा रहे थे और बार-बार चदरिया वाले दादाजी के पास जा रहे थे,लेकिन दादाजी गाना गवाने के मामले में एकदम त्यागी टाइप के थे उन्हें कोई भी अनुरोध व्यापतता नहीं था, वे एक कान से सुन कर उसी कान से ऐसी बातें बाहर कर रहे थे बाद में पता चला कि इस म्यूजिकल ग्रुप के मालिक वही हैं और उनका पूरा नाम है मधुर झुनझुनवाला। हमें एक और बात पर आष्चर्य हुआ कि जिन सज्जन का गाना सिर्फ बजाने वाला ही सुन रहा था वे एक बार फिर मंच पर अवतरित हुए लेकिन थोडी देर बाद वे गाना बीच में ही छोडकर झल्लाते हुए बैठ गए वे अपनी समझ में चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे थे कि कीबोर्ड प्लेयर ने जानबूझकर मेरा गाना बिगाडा, मैं सब जानता हूं ये किसकी साजिष है। आरोप गंभीर थे लेकिन कोई गंभीर नहीं हुआ सब इस चक्कर में थे कि कब मेरी बारी आए,इसी आपा-धापी में मेरे परिचित ने भी गाना गाया, गाना अच्छा था इसलिए वहां बैठे श्रोताओं उर्फ गायकों को बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा, खैर कार्यक्रम आखिर समाप्त हुआ। म्यूजिकल ग्रुप के मालिक मधुरजी ने सूचना दी कि यह कार्यक्रम हर माह की पहली तारीख को षहर के इसी हाल में आयोजित किया जाता है लेकिन अब मैं एक माह के लिए अमेरिका जा रहा हूं इसलिए अगले माह का प्रोग्राम रामभरोसे जी आयोजित करेंगे, रामभरोसे मेरे उन्हीं परिचित का नाम था जिनका जिक्र मैने अभी तक किया।
  अगले माह की पहली तारीख को रामभरोसेजी का फोन आया- बोले गुरू याद है न! आज वहीं आना है संगीत का कार्यक्रम है। संगीत की वजह से तो नहीं लेकिन जो कुछ हम वहां देख चुके थे उसका मजा हम छोडना नहीं चाहते थे इसलिए अपनी पत्नी के साथ हम फिर वहां जा पहुंचे। देखा इस बार बैठने की व्यवस्था वैसी ही थी जैसी होती है यानी मंच प्रवेषद्वार के सामने था और दर्षक उसी ओर मुंह किए बैठे थे मंच पर पीछे एक बैनर लगा था जिस पर नाम तो मधुर म्यूजिकल ग्रुप का ही था लेकिन उसके संचालक मधुरजी का नाम हटा दिया गया था, उनकी जगह पर रामभरोसेजी अपना नाम लिखवा चुके थे इसके अलावा उन लोगों का भी नाम था जिनका भरोसा रामभरोसेजी पर था। कार्यक्रम में कुछ और लोगों ने अच्छा गाया लेकिन जिन लोगों ने अच्छा गाया वे रामभरोसेजी का भरोसा खो बैठे और उन्होंने कार्यक्रम समाप्ति के बाद अपने नवगठित गिरोह को सूचना दी कि इन सभी को अपन अगले कार्यक्रम में नहीं बुलांएगें।
रामभरोसेजी की गाना गाने के अलावा दीगर प्रतिभाओं के बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता था,हमारे अभिन्न मित्र वरुणजी रामभरोसेजी की गायन प्रतिभा के इतने कायल हो गए कि उन्हांेने ठान लिया कि उनके कार्यक्रम आयोजन में वे उनकी मदद भी करेंगे और खुद भी गाएंगे! एक दिन वरुणजी ने ही बताया कि रामभरोसे के यहां रियाज है,चलना,मैने कहा ठीक है, वहां जाकर देखा कि गाने-बजाने का पूरा इंतजाम तो था ही माइक और साउंड बाॅक्स भी लगे थे मैने कहा यार बडा बढिया इंतजाम करके रखा है तो रामभरोसेजी ने अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए बताया कि यह सब मधुर झुनझुनवाला का माल है और अब उसके हाथ में झुनझुना तक नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि अपन ने इसी माल से अपना म्यूजिकल ग्रुप षुरू कर दिया है जिसका नाम है राग और अगलेे हफ्ते राग म्यूजिकल ग्रुप का कार्यक्रम भी है जिसमें आपको आना है। हम पहुंचे। देखा रामभरोसेजी पांच-छह लोगों से एकांत में बात कर रहे थे कुछ देर बाद देखा इनमें से किसी ने पांच सौ किसी ने तीन,तो किसी ने दो सौ रुपए रामभरोसेजी को दिए। मैने वरुणजी से पूछा कि यह क्या था? उन्होंने बताया कि दरअसल रामभरोसेजी ने नए गायकों को मंच देने की ठानी है, हालांकि यह जरूरी नहीं कि गायक नया ही हो,पुराना भी हो सकता है मतलब यह है कि जिनको गाने की तलब लगी है वे यहंा आकर गा सकते हैं और इसके लिए उन्हें दो सौ रुपए प्रति गाने के हिसाब से रामभरोसेजी को भुगतान करना होगा। रामभरोसेजी अपने इसी फार्मूले पर चल कर अपनी तरह से संगीत की सेवा कर रहे थे कि राग म्यूजिकल ग्रुप के गठन से जुडे एक ऐसे कलाकार ने रामभरोसे जी का भरोसा तोड दिया जो गाना गाते वक्त गाने से ज्यादा रफी साहब की अदाएं काॅपी करने में डूबे रहते थे। पता चला कि उनके म्यूजिकल ग्रुप का नाम भी मधुर झुनझुनवाला से प्रेरित है लेकिन संगीत की सेवा करने का उनका रेट रामभरोसेजी से थोडा कम है, वे सौ रुपए प्रति गाने के हिसाब से संगीत की सेवा कर रहे हैं। यह भी पता चला है कि कुछ और म्यूजिकल ग्रुप की खरपतवार रामभरोसे जी के षेष बचे साथियों में से ही कुछ के मन में पनप रही है और वह कभी भी मन के दो बीघा से बाहर आकर किसी मंच पर दिखाई दे सकती है,फिलहाल महंगाई के इस दौर में   इतनी सस्ती दरांे पर संगीत की सेवा जारी है अभी रेट सौ रुपया प्रति गाना है हो सकता है आगे जाकर पचहत्तर रुपया या षायद पचास रुपया प्रति गाना भी हो जाए। देखिए आपके षहर में भी कोई न कोई मधुरजी या रामभरोसेजी जरूर होंगे।
धीरेंद्र षुक्ल

 


   

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